आप वो हरम में समझदारी से बचिए ।
आप वो बेगम की अदाकारी से बचिए ।।
अगर ख्वाहिश है जरा सी विश्रांति का ।
तो आप रकीबों की वफादारी से बचिए ।।
यहाँ दुश्मन से खतरा अल्प रहेता है ।
मगर यहाँ अपनों की गद्दारी से बचिए ।।
नियत सबकी यहाँ बनावटी दिखती है ।
बस आप नगर में मुख्तारी से बचिए ।।
यहाँ पर रहेगी आपकी भी शान जिंदा ।
बस जरूरत है आप बेकारी से बचिए ।।
रंग-ऐ-हिना के अलावा क्या जिंदगी है ।
नादां दिल वो जनून-ऐ-इश्क़ से बचिए ।।
हमने तो होश मुद्दत से गुमा दिया है ।
आप वो हसीनों की नशातरी से बचिए ।।
कुछ दिलसे कर दिखाने की इच्छा है ।
तो पहले अपनी हि खुद्दारी से बचिए ।।
सिद्धि भी खुद चली आएगी इक दिन ।
आप सिर्फ धर्म की बिमारी से बचिए ।।
उसने पीठ पर मारा है इश्क-ऐ-ख़ंजर ।
आप दिलबर की मक्कारी से बचिए ।।
अभी हकीम से अगर दौलत बचानी है ।
तो मुक़दमे और गैरसरकारी से बचिए ।।
यहाँ पर तो हजारों लोग फंदे फेकते हैं ।
आप नए चेहरों की इफ्तारी से बचिए ।।
दिव्येश कहे यहां शातिर अदा ढूढ़तीं हैं ।
आप भी दिल की गिरफ्तारी से बचिए ।।
© दिव्येश जे. संघाणी
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